भारत में इसा से 500 वर्ष पूर्व लिखे गए इतिहास में पर्दा प्रथा का वर्णन नहीं मिलता है तब अदालतों के अंदर की स्त्रियों के आने -जाने का उल्लेख है।
जब हमारी औरते यहाँ उपस्थिति होती थी तो वे यहाँ बिना पर्दे के आती थी महिलाये गांव में भी बिना चेहरा ढके काम रक्ति थी महिला स्वंत्रता का यहाँ पूरा पालन मिलता है पुराने प्राचीन वेदो एवं धर्मग्रंथो में पर्दा प्रथा का कही भी विवरण नहीं मिलता है हिन्दुओ के पवित्र ऋग्वेद में लोगो को विवाह के समय में कन्या की और देखने को कहा गए है इस समय भी महिला बिना पर्दे के रह सकती थी।
धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के पेज क्रमांक 336 के अनुसार सबसे पहले महाकाव्य में पर्दा प्रथा मिलती है पर यहाँ भी केवल कुछ राज परिवारों में ये मिलता है जो घराने भर बड़े और नामी होते थे केवल वह ही ऐसा करते थे अपने रामायण भी देखी होइ और महाभारत भी यहाँ आपने माता सीता और कुंती दोनों में से किसी को भी पर्दे में नहीं देखा होगा इसका मतलब की यहाँ भी पर्दा महिलाओ के लिए नहीं था।
जातक कथाओ की रचनाओं में कही कही स्त्रियों के पर्दे का उल्लेख मिलता है अंता और खजुराहो की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है अब हम मुगलकालीन इतिहास के पन्नो को पलटना शुरू करते है तो यहाँ पर दो बाते साफ होती है पहली की जब मुश्लिम शाशक भारत आये तब यहाँ स्त्रियों के साथ रेप के मामले सामने आने लगे क्योंकि इस पहले रेप भी हमारे यहां कही नजर नहीं आता।
हमारे धर्म में स्त्रियों के साथ चल तो नजर आता है पर रेप कही नहीं दिखता दूसरी बात की पर्दा प्रथा भी मुश्लिमों के देश में आगमन होने के बाद ही नजर आने लगी हिन्दू स्त्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से ये प्रथा लागू की गयी थी महिलाओ को सुरक्षा देना अब जरूरी हो गया था आये दिन महिलाओ को निशाना बनाया जा रहा था मुस्लिम समाज की स्त्रियों में ये था तो हमारे समाज ने भी खुलेपन को रोकने के लिए और अपनी महिलाओं को बुरी नजर से बचाने के लिए इसको लागू करवाया।
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