भारतीयों की रंग को लेकर कुंठा होना नई बात नहीं है आज भी गोर रंग वा गोर लोगो को स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ माना जाता है आज भी भारत में गोर लड़की को अधिक महत्व दिया जाता है।
अधिंकाश माँ बाप भी गोरी लड़कियों को ही तरजीह देते है कुछ लोगो का मांनना है की अंग्रेजो ने हमारे मन में गोर रंग को लेके हीनभावना पैदा कर दी है हमारे दिमाग में अंग्रेज, अंग्रेजी, अंग्रेजियत को अपने से श्रेष्ठ स्वीकार कर लिया है इसलिए हमारे मन में गोर रंग को लेके इतना लगाव है लेकिन ये बात कहा तक सच्ची है इसका तो पता नहीं लेकिन गोर रंग को चाहने वाले पूरी दुनिया में है चीन भी इसका सबसे बड़ा उदारहण है।
पिछले दिनों वहां एक विज्ञापन ने बहुत सुर्खियां बटोरी थीउसमें च्एक चीनी औरत एक काले आदमी को डिटर्जेंट खिलाकर वॉशिंग मशीन में डाल देती है, जिसमें धुलने के बाद वो नीग्रो गोरा होकर निकलता है इस एड की चीन में काफी आलोचना हुयी थी इसे काले लोगो के प्रति नस्लीय रवैये का उदाहरण माना गया था।
वास्तव में, गोरे रंग के प्रति आकर्षण बहुत ही घातक है इससे जबरदस्त विभाजन पैदा होता है टेनिस स्टार सेरेना विलियम्स, अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी से लेकर दिवंगत बॉक्सर मोहम्मद अली, महात्मा गांधी तक इसके शिकार हो चुके हैं शायद यही वजह है की हमरा पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने रंगभेद के प्रति काफी उदार रवैया अपनाया था और आजादी के तुरंत बाद अफ़्रीकी शिक्षण संस्थाओ के द्वार खोल दिए थे।
प्राचीन हिंदू समाज भी शायद रंगभेद की गंभीरता को समझता था इसीलिए, संभवत: हमारे अनेक देवी-देवताएं श्याम वर्ण के बताए गए हैंपिछले दिनों, एक मार्केट रिसर्च कंपनी ग्लोबल इंडस्ट्री एनालिस्ट इनकॉर्पोरेटेड ने दावा किया कि विश्व में 2020 तक गोरे होने वाले उत्पादों का कारोबार 23 बिलियन डॉलर्स तक जा पहुंचेगा और उसमें सबसे बड़ी भागीदारी एशियाई देशों की होगी।
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