पुराने जमाने में वैद्य हाथ की नाड़ी से ही रोग का कैसे पता लेते थे ,क्या उनकी जानकारी सही होती थी

नाड़ी देखकर रोग की जानकारी देना हमारे  भारत की  प्राचीन विद्या है। 

महंगी जांचें नहीं, बस नाड़ी देखकर ...

पहले के समय में चिकित्सक किसी भी व्यक्ति की नाड़ी देखकर उसके रोग के बारे में बता  देते थे  यहां तक कि शरीर के किस अंग में रोग या तकलीफ है  रोगी ने क्या खाया पिया है या भविष्य में उसको कौन सा रोग होगा सभी रोगों की जानकारी  नाड़ी  के द्वारा हो जाती थी हमारा दिल हर समय फैलता और सिकुड़ता रहता है  यानी धड़कता रहता है जब यह फैलता है तो उसके अंदर फेफड़ों से शुद्ध रक्त आ जाता है और जब यह सिकुड़ता है तो यह शुद्ध रक्त महाधमनी में चला जाता है महाधमनी शरीर की सभी धमनियों को यह रक्त भेजती है इस प्रकार से धमनी में रक्त के जाने से हर बार धक्का लगता है इस धक्के को ही नाड़ी का  स्पंदन या उछाल कहते हैं। 

Vaidya told about disease after seeing patient pulse

 नाड़ी  के स्पंदन से रोग की जांच नाड़ी देखना कहते हैं स्त्री और पुरुष दोनों की हाथों की  नाड़ियाँ अलग-अलग देखी जाती है  वैद पुरुष के दाहिने हाथ की नाड़ी देखकर और स्त्री के बाएं हाथ की नाड़ी को देखकर रोग की पहचान करते हैं हालांकि कुछ वेद पुरुष स्त्री के दोनों हाथ की नाड़ी भी देख कर रोग का ज्ञान प्राप्त करते हैं किस व्यक्ति को कौन सा रोग है यह जानने के लिए सुबह का समय उचित माना जाता है और इस समय खाली पेट रहकर ही वेद के पास जाना होता है नाड़ी सुबह के समय देखना अधिक उचित इसलिए रहता है क्योंकि यह   वह समय रहता है जब मानव शरीर की वात पित्त और कफ तीनों की नाड़ी सामान्य रूप से चलती है गौरतलब है कि जब सर्दी हमारे शरीर में धातुओं का अनुपात और असंतुलित हो जाता है तो मानव शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है हमारे शरीर में वात कफ और  पित्त त्रि धातु पाई जाती है इसके अनुपात में असंतुलन आने पर ही शरीर स्वस्थ नहीं रहता है। 

Know How To Check The Nerves, One To One And A Half Minutes ...

 यहाँ जाने कौन सी कहां कौन सी  नाड़ी  होती है :कलाई के अंदर अंगूठे के नीचे जहां प्लस महसूस होती है 3 अंगुलियां रखी जाती है वात नाड़ी अंगूठे की जड़ में ,पित्त  नाड़ी  दूसरी अंगुली के नीचे और कफ  नाड़ी  तीसरी अंगुली के। 

नाड़ी परिक्षण के बारे मे जाने जो रोग ...

नीचे यहां हम आपको बताते हैं कि कौन सी नाड़ी से किस रोग का पता चलता है अगर मानसिक रोग ,टेंशन में गुस्सा या प्यास लगने के समय नाड़ी की गति काफी तेज और गर्म चाल से चलती है। 

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कसरत और मेहनत वाले काम के समय भी इसकी गति काफी तेज हो जाती है। 

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गर्भवती स्त्री की   नाड़ी भी काफी तेज चलती है ,किसी व्यक्ति की नाड़ी अगर रुक रुक कर चल रही है तो उसे असाध्य रोग होने की संभावना अधिक रहती है  क्षय रोग में नाड़ी की गति मस्त चाल वाली होती है जबकि अतिसार में यह काफी स्लो गति से चलती है। 

नाड़ी - विकिपीडिया

यह भूख ,प्यास ,नींद ,धूप में घूमने रात्रि में टहलने से मानसिक स्थिति से भोजन से दिन के अलग-अलग समय मौसम से बदलती है मृत्यु नाड़ी  से कुशल वैद्य भावे मृत्यु के बारे में भी बता सकते हैं। 

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