भगवान जगन्नाथ का मंदिर अनेक रहस्यों से भरा हुआ है इसके चमत्कारों के आगे वैज्ञानिक भी फेल है जगन्नाथ मंदिर भगवन जगन्नाथ ,बलबद्र और सुभद्रा का मंदिर है इन सभी देवी देवताओ की मुर्तिया एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भ ग्रह में स्थापित है यह विश्व का सबसे बड़ा ,भव्य और ऊँचा मंदिर है।
चार लाख वर्गफुट में फैला और करीब 214 फुट ऊँचे मंदिर का शिखर आसानी से नहीं देखा जा सकता यह मंदिर जितना विशाल है उतना ही आधुनिक विज्ञानं की समझ से परे है इस मंदिर के बारे में एक हैरान करने वाली बात सामने आयी है जिसके मुताबिक मंदिर के शिखर पर लहराती ध्वजा हमेशा विपरीत दिशा में लहराती है।
मंदिर वक्र रेखीय आकार का है वक्र जिस शिखर पर स्थित है वहा पर भगवान विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है इसे निल चक्र भी कहा जाता है जो अष्टधातु से निर्मित है तथा इसे देवप्रतिमा की तरह अतिपावन माना जाता है आज तक मंदिर के गुंबद आसपास कोई भी पक्षी उड़ता नजर नहीं आया पक्षी शिखर के पास नहीं उड़ते।
सिंह द्वार के मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर सागर की लहरों की आवाज नहीं सुनिए देती जबकि भार निकलते ही समुन्द्र की लहार की आवाज जोर -जोर से सुनाई पड़ती है मंदिर की रसोई में प्रसाद तैयार करने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकडियों पर ही पकाया जाता है।
इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर वाले बर्तन की सामग्री सबसे पहले पक्ति है फिर निचे की तरफ समाग्री पक्ति जाती है यहां पर पांच सो से जायदा रसोइये काम करते है मंदिर की रसोई में इतना खाना बनता है उत्स्व के दिनों यहां पर 20 लाख व्यक्ति भोजन कर सकते है कहते है की प्रसाद चाहे कितना भी बने लेकिन ये लाखो लोग के कण नहीं पड़ता ना ही व्यर्थ जाता है यहाँ जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरो में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं तीनों की मूर्तिया काष्ठ की बनी हुई हैं बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनकार आकार और रूप वही रहता है कहा जाता है कि मूर्तियो की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
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