हिंदू धर्म में गंगाजल को अमृत के समान माना गया है गंगाजल हर शुभ काम में काम में लिया जाता है।
गंगाजल के बिना हर पूजा को दूरी माना जाता है पुरानी कथाओं में गंगाजल को भगवान हरि का चरणामृत कहा गया है मान्यता है कि मृत्यु से पहले यदि किसी मरणासन्न व्यक्ति के मुँह में तुलसी के पत्तों के साथ गंगाजल डाल दिया जाए तो वह मुक्त हो जाता है और भगवत लोक में निवास करता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गंगाजल खराब क्यों नहीं होता इसका क्या कारण हो सकता है आज हम इसके बारे में कुछ जानकारी देते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हरिद्वार में गोमुख से निकल रही गंगाजल में हिमालय पर मिलने वाली कई अनूठी जड़ी बूटियां ,खनिज लवण मिल जाते हैं गंगाजल को लेकर अभी तक कई रिसर्च में हो चुकी है जिनके मुताबिक गंगाजल में बेटरिया फोस नामक बैक्टीरिया पाया जाता है यह पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले पदार्थों को खाता रहता है इसी जल की शुद्धता बनी रहती है।
गंगा के पानी में गंधक प्रचुर मात्रा है इसलिए कभी खराब नहीं होता इसके अतिरिक्त कुछ भू रासायनिक क्रियाये भी गंगाजल में होती रहती है जिससे इस में कीड़े पैदा नहीं होते यही कारण है कि गंगा के पानी को पवित्र माना जाता है।
जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार के आगे कुछ अन्य शहरों की ओर बढ़ती है वैसे वैसे ही गंगा शहरी गंदगी मिलने के कारण प्रदूषित होना शुरू हो जाती है इंग्लैंड , फ्रांस ,अमेरिका जर्मनी के अनेक वैज्ञानिकों ने गंगाजल का परीक्षण किया और पाया कि गंगाजल सबसे विलक्षण है।
इंग्लैंड के मशहूर चिकित्सक सी.ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस पानी में कीटाणु नहीं होते उसके बाद महर्षि चरक को उद्धत करते हुए लिखा है कि गंगाजल सही मायने में पीने योग्य है निश्चित रूप से चमत्कार है कि विश्व में सिर्फ गंगाजल है इसे बोतल में बंद कर दो तो भी खराब नहीं होता है यह भगवान की लीला है कि उन्होंने सिर्फ इस नदी में ही ऐसे रसायन डाले हैं।
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