कोरोना वायरस की महामारी के चलते लॉक डाउन की वजह से पूरी दुनिया परेशान है और सभी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा है।
पिछले साल टाटा स्टील भुवनेश्वर के हाफ मैराथन में 21.097 किमी में 1:33:05 के साथ दूसरे स्थान पर रहने वाली 24 साल की एथलीट प्राजक्ता गोडबोले को बहुत ही मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है लॉक डाउन की वजह से उनकी मां बेरोजगार हो गई है और उनके पिता कुछ समय पहले लकवा ग्रस्त हो गए थे नागपुर के सिरासपेठ झुग्गी में रहने वाली प्राजक्ता का परिवार एक तरह से कोरोना के संकट के दौरान भुखमरी का सामना कर रहा है।
लंबी दूरी की धावक प्राजक्ता गोडबोले का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि अगले शाम के भोजन का प्रबंध कहां से होगा प्राजकता गोडबोले ने 2019 में इटली में हुए वर्ल्ड यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स कंपटीशन में 5000 मीटर की रेस में भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व किया था उस प्रतियोगिता में उन्होंने 18:23:92 का समय निकाला था लेकिन फाइनल दौर के मुकाबले के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई थी और बहरहाल वे देश की उभरती एथलीट्स में प्रमुख स्थान रखती है और उनसे भारतीय खेल जगत को काफी उम्मीदें भी है।
प्राजक्ता की पिता विलास गोडबोले एक सुरक्षाकर्मी के तौर पर काम करते थे लेकिन एक दुर्घटना के बाद लकवा ग्रस्त हो जाने के कारण बिस्तर में पड़ गए उनके इलाज में भी काफी पैसा खर्च हुआ और घर की सारी बचत लग गई पिता के लकवा ग्रस्त हो जाने के बाद घर चलाने का दारोमदार माँ पर गया प्राजक्ता की मां अरुणा ने रसोइए का काम करना शुरू कर दिया विवाह समारोह और दूसरी पार्टियों में कैटरिंग वालों के साथ जुड़कर काम करने लगी इससे उन्हें परिवार से ₹5000 से 6 हजार की कमाई हो जाती थी लेकिन लॉकडाउन के कारण यह काम भी बंद हो गया अब उनके परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ चुकी है।
प्राजक्ता का कहना है कि लॉक डाउन में आमदनी का कोई जरिया नहीं रह जाने के कारण उनका परिवार दूसरों की मदद पर निर्भर हो गया है लोग कुछ लोग चावल ,दाल और दूसरी चीजें दे जाते हैं तो किसी तरह से काम चलता है लेकिन यह कब तक चलेगा यह समझ नहीं आ रहा प्राजक्ता ने कहा कि इन हालातों में ट्रेनिंग के बारे में भी नहीं सोच सकती यहां तो जिंदा रह पाना भी मुश्किल हो रहा है प्राजक्ता ने कहा यह लॉक डाउन ने हमें बर्बाद कर दिया है हमें यह नहीं पता कि क्या करें किस से मदद की मांग करें बस लॉक डाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं प्राजक्ता ने कहा कि उन्होंने जिला या राज्य स्तर किसी भी एथेलिस्ट अधिकारी से मदद नहीं मांगी है।
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