छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय प्राणी विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ कोमल सिंह सुमन प्रकृति में मेंढक को की मौजूदगी पर ना केवल शोध कर रहे हैं।
4 साल से उनके संरक्षण के लिए मुहिम भी चला रहे हैं उनका कहना है कि शोध के नाम पर कीटनाशकों के चलते बड़ी संख्या में मेंढ़को का खात्मा हुआ है यही मलेरिया ,डेंगू ,चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारियों के विस्तार का कारण बना है।
शोधकर्ता का दावा है कि छत्तीसगढ़ी नहीं देश में मेंढ़को की संख्या तेजी से कम हो रही है डॉक्टर कोमल देश के अलग-अलग इलाकों में जाकर को बचाने की लोगों से अपील कर रहे हैं संरक्षण को लेकर चलाई जा रही मुहिम में 500 से अधिक युवा जुड़ चुके हैं।
डॉक्टर के कोमल के मुताबिक अब घर व आसपास बारिश में हमें टर्र -टर्र की आवाज सुनाई कम दे देती है कम होने से मलेरिया ,डेंगू जैसी बीमारियों के वाहक मच्छर और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले की कीट, टिड्डे ,कनखजूरा, बीटल्स ,कनखजूरा चींटी ,दीमक और मकड़ी तेजी से पनपने लगे हैं प्रदूषण के कारण मेंढक कम हुए हैं।
खेतों में कीटनाशक उनके लिए सबसे खतरनाक साबित हो रहे हैं इंसानी हस्तक्षेप उभयचरो जंतुओं की मौत की सबसे बड़ी वजह है बरसात में मेंढ़को का प्रजनन काल है यह पानी की आपूर्ति को शुद्ध रखते हैं 1980 के करीब इनका निर्यात होता था केंद्र सरकार ने अब प्रतिबंध लगा दिया है।
मेंढक में करीब 200 प्रकार के लाभकारी अल्केलाइड पाए जाते हैं बंगाल ,सिक्किम ,असम , गोवा में लोग इसका भोजन में इस्तेमाल करते हैं डॉक्टर कोमल सिंह सुमन कहते हैं कि प्रकृति में मेंढक की मौजूदगी अनिवार्य है।
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