जयद्रथ की मृत्यु अर्जुन के हाथों हुई थी अर्जुन ने जयद्रथ का सिर काटा कि वह जाकर तपस्या कर रहे वृद्धछत्र जयद्रथ के पिता की गोद में गिरा।
जैसे वृद्धक्षत्र ने जयद्रथ का मस्तक पृथ्वी पर गिराया उनका सिर भी फट गया जयद्रथ सिंधु देश का राजा था उसका विवाह कौरवों की बहन दुशाला से हुआ महाभारत के अनुसार जब पांडव 12 वर्ष के वनवास पर थे तब एक दिन राजा जयदर्थ उसी जंगल में गुजरा जहां पांडव रह रहे थे उस समय आश्रम में द्रोपती को अकेला देखकर जयद्रथ द्रोपदी हरण कर लिया पांडवों को यह बात पता चली तो उन्होंने पीछा कर जयद्रथ को पकड़ लिया है भीम जयद्रथ वध करना चाहते थे लेकिन कौरवों की बहन दुःशला के पति होने के कारण अर्जुन ने उन्हें रोक दिया गुस्से में आकर भीम ने जयद्रथ के बाल मूंडकर चोटियाँ रख दी ऐसी।
हालत देखकर युधिष्टर को उस पर दया आ गयी और उन्होंने जयदर्थ को मुक्त कर दिया पांडवों से पराजित होकर जयद्रथ ने अपने राज्य नहीं गया और अपमान का बदला लेने के लिए हरिद्वार जाकर भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगा तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा जयद्रथ ने भगवान शिव से युद्ध में पांडवों को जीतने का वरदान मांगा तब भगवान शिव ने जयद्रथ से कहा पांडवों से जीतना और उन्हें मारना किसी के बस में नहीं है।
युद्ध में केवल एक दिन तुम अर्जुन को छोड़ शेष चार पांडवों का युद्ध में पीछे हटा सकते हो क्योंकि अर्जुन स्वयं भगवान नर का अवतार है इसलिए उन पर तुम्हारा बस नहीं चलेगा ऐसा कह कर भगवान अंतर्धान हो गए और जयद्रथ अपने राज्य लोटा महाभारत में जब युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह बनाया तो उसके मुख्य द्वार पर जयद्रथ को नियुक्त किया योजना अनुसार संशप्तक योद्धा अर्जुन को युद्ध के लिए दूर ले गए जब युधिष्ठिर ने देखा कि चक्रव्यूह के कारण के सैनिक मारे जा रहे हैं तो उन्होंने अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कहा।
अभिमन्यु ने कहा मुझे इस चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो आता है लेकिन बाहर निकलने का उपाय मुझे नहीं पता तभी युधिष्ठर ने भीम ने भी अभिमन्यु को विश्वास दिलाया कि तुम जिस स्थान पर भी चक्रव्यूह तोड़ोगे हम भी उसी स्थान में भी उन्हें प्रवेश कर पाएंगे जो का विध्वंस कर देंगे युधिष्ठत्र और भीम की बात मानकर अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदकर उस में प्रवेश कर गया लेकिन महादेव के वरदान जयद्रथ ने भीम नकुल सहदेव आदि को बाहर ही रोक दिया और अभिमन्यु की मृत्यु हो गई।
अर्जुन को पता चला कि अभिमन्यु की मृत्यु का कारण जयद्रथ है तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कल सूर्यस्त से पहले जयद्रथ या फिर अग्नि में समाधि ले लूंगा जयद्रथ की रक्षा के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने अगले दिन शकटव्यू की रचना की शाम तक युद्ध करने के बाद भी अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पाया क्योंकि उसकी रक्षा ,करण अश्वथामा ,भूरिश्रवा ,शल्य आदि महारथी कर रहे थे जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि सूर्यास्त समय होने वाला है तो उन्होंने अपनी माया से सूर्य को ढकने के लिए अंधकार उत्पन्न कर दिया सब को लगा कि सूर्य अस्त हो गया और यह देखकर जयद्रथ के रक्षक सावधान हो गए और जयद्रथ स्वयं अर्जुन के सामने आ गया और उसे अग्नि समाधि लेने के लिए कहने लगा तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह तुरंत जयद्रथ का वध कर दें।
श्री कृष्ण ने अर्जुन को एक बात बताई थी कि जयद्रथ के पिता ने उसे वरदान दिया है जो भी वीर इसका सिर पृथ्वी पर गिरायेगा उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जाएंगे इसलिए तुम इस प्रकार बाण चलाओ की जयद्रथ का मस्तक काटकर उसके पिता की गोद में गिरे वह इस समय समंतकपंचक क्षेत्र में तपस्या कर रहे हैं अर्जुन ने अमोघ अस्त्र चलाकर जयद्रथ का मस्तक काट दिया यह मस्तक सेवृद्धक्षत्र की गोद में जाकर गिरा जिससे उन्होंने जो जयद्रथ का मस्तक पृथ्वी पर किराया उनके मस्तक के सौ टुकड़े हो गए इस प्रकार अर्जुन ने जब जयद्रथ का वध कर दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्पन्न अधिकार अंधकार दूर कर दिया।
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