क्या एकलव्य श्री कृष्ण के भाई थे,और आखिर क्यों श्री कृष्ण ने एकलव्य का वध किया था?

श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में धर्म को स्थापना करने के लिए बहुत बड़े-बड़े काम किये है उन्होंने ही महाभारत के युद्ध के द्वारा पापियों का नाश करवाने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी थी। 

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श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है की उन्होंने एकलव्य का वध किया था एकलव्य वो है जिन्होंने गुरु द्रोणाचार्य को अपना दाहिना अन्घुता काटकर दे दिया था गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य महाभारत में एक महत्वपूर्ण चरित्र और दुनिया का सबसे बड़ा दनुर्धारि होने के प्रशिद्ध था जो गुण में अर्जुन के समान है और एकलव्य द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था द्रोणाचार्य पांडव और कोरवो दोनों के गुरु थे एकलव्य कृष्णा के चचेरे भाई थे एकलव्य के पिता देवश्रवा जो वासुदेव के भाई थे, जो कि जंगल में खो गए थे।

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उन्हें  शिकारीयो के राजा निषाद ने पाला महाभारत काल मेँ प्रयाग के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य एकलव्य के पिता निषादराज हिरण्यधनु का था गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी  उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी निषाद हिरण्यधनु और उनके सेनापती गिरबीर की वीरता विख्यात थी निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के स्नेहांचल से जनता सुखी व सम्पन्न थी।

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राज राज्य का संचालन अमात्य परिषद की सहायता से करता था निषादराज हिरण्यधनु को रानी सुलेखा द्वारा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम “अभिद्युम्न” रखा गया प्राय: लोग उसे “अभय” नाम से बुलाते थे  पाँच वर्ष की आयु मेँ एकलव्य की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई द्रोणाचार्य इनके कौशल से काफी प्रभावित थे परन्तु द्रोणाचार्य ने उन्हें राजकुमारों के झिझक के  स्वीकारकारन  करने से इनका कर दिया परन्तु वे उन्हें अपना गुरु मानते इसलिए उन्होंने उनसे कुछ मांगने को बोलै जब एकलव्य ने कहा की वह गुरु दक्षिणा के रूप में उन्हें क्या दे सकते है तो द्रोणाचार्य ने उनके दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया और एकलव्य ने बिना एक पल सोचे उस अंगूठे को काटकर अपने ईष्ट गुरु को दान कर दिया।

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एकलव्य के जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य था अपनी महानता सिद्ध करना की वो अर्जुन से बड़ा पराक्रमी है बिना दाहिने अंगूठे के भी परन्तु भविष्य में उसका स्वाभिमान अहंकार में बदल गए वह धर्म के मार्ग  से भटक  गया वह यादव और कौरव कुल के भविष्य के खतरा बन सकता है एकलव्य और उसका समुह निषादराज के समय से जरासंध के बहुत बड़े समर्थक थे और जरासंध भगवान श्री कृष्ण का जन्म जात शत्रु था इस प्रकार एकलव्य भगवान श्री कृष्ण का शत्रु बन गया उनका चेहरा भाई से  होने के बावजूद भी एकलव्य ने जब श्री कृष्ण का सामना किया और उन्हें द्व्न्द की चुनौती दी।

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कृष्ण ने उनकी चुनौती स्वीकार कर लिए एकलव्य और उनका मुकाबला हुआ श्री कृष्ण ने एकलव्य को मार डाला इस तरह  श्री कृष्ण ने उसके अहंकार का विनाश किया  संसार में धर्म की स्थापना की द्रोण-पर्व में, कृष्ण ने खुलासा किया कि उन्हें जरासंध, शिशुपाल और एकलव्य जैसे लोगों को मारना पड़ा क्योंकि वे बाद में कौरवों के साथ चले जाते और धर्म की स्थापना में बाधा डालते ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उसकी मृत्यु पर एकलव्य को वरदान दिया था कि वह द्रोणाचार्य को मारने के लिए पुनर्जन्म लेगा ऐसा कहा जाता है कि यह एकलव्य था जो द्रष्टद्युम्न के रूप में पैदा हुआ था और अंत में द्रोणाचार्य को मार दिया था।

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