किसान कानून से जुड़ी कॉन्ट्रैक्ट खेती का विरोध तो किया जा रहा है।
लेकिन गुजरात के मेहसाणा इलाके के आलू किसान इस कॉन्ट्रैक्ट खेती की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्पादक बन गए हैं नतीजा यह हुआ की आज देश के कुल आलू उत्पादन में 10 फ़ीसदी से भी कम हिस्सेदारी के बावजूद देश के कुल आलू निर्यात में गुजरात की हिस्सेदारी 27 फ़ीसदी है केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्था के मुताबिक इसकी मुख्य वजह है कि गुजरात के किसान आलू की उन वैरायटी की खेती करते हैं जिन्हें प्रोसैस्ड की जा सकती है अमेरिका और यूरोप में 65से 70 फीसद आलू प्रोसैस्ड किए जाते हैं।
मेहसाणा के आलू किसानों के मुताबिक उन्हें प्रोसेस्ड वैरायटी वाले आलू उगाने की जानकारी फ्रेंच फ्राइज बनाने वाली कंपनी से आलू की खेती के करार के बाद मिला उसका नतीजा यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुजरात के आलू की मांग लगातार बढ़ रही है वर्ष 2007 के आसपास इस कंपनी ने गुजरात के मेहसाणा इलाके में आलू की खेती के लिए किसानों से करार किया है कृषि निर्यात प्रोत्साहन के लिए काम करने वाली ट्रेन प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पाद के भारत को सप्लायर के रूप में नहीं देखा जाता है इसकी मुख्य वजह यह है कि एक साथ भारी मात्रा में उत्पाद की उपलब्धता नहीं है।
किसान के पास माल होता है लेकिन निर्यातकों को यह पता नहीं होता है कि किन-किन किसानों के पास कितना माल है दूसरी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय खरीददार भारतीय उपज की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त नहीं हो पाते नए कृषि कानून के तहत कॉन्ट्रैक्ट पर खेती शुरू होने से इन दोनों ही समस्याओं का समाधान निकल जाएगा भारत के उत्पाद के अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांडिंग होगी निर्यात मांग निकलने से किसानों की आय की गारंटी होगी और किसानों को अपनी उपज की कीमत के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बीवी कृष्णा राव ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट खेती शुरू होने से चावल के निर्यात में कम से कम 20 से 3000000 टन का इजाफा हो सकता है निर्यातक किसी भी राज्य के ग्रामीण इलाके में जाकर सीधे तौर पर किसानों से खरीद फरोख्त कर सकेंगे ग्रामीण इलाकों में चावल की यूनिट लगाने में भी निवेश कर सकते हैं इससे किसानों को आर्थिक फायदा होगा और देश का निर्यात भी बढ़ेगा।
कृषि निर्यातकों के मुताबिक कीटनाशक रसायन के इस्तेमाल की वजह से अमेरिका व यूरोप के कई देश भारत के कई उत्पादों की खरीदारी नहीं करते हैं कॉन्ट्रैक्ट खेती आरंभ होने से किसान इस बात को जान पाएंगे कि उन्हें अपने उत्पादों में किस तरह का कीटनाशक केमिकल का इस्तेमाल करना होगा तभी भारतीय उत्पाद की अपनी छवि बनेगी और किसानों को फायदा होगा।
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