क्या मछलियों का दिमाग का सोशल डिस्टेंसिंग से कोई संबंध है अंतरराष्ट्रीय शोध में यह पाया गया है कि मछली के दिमाग में एक खास पदार्थ जीवो के वातावरण में दूसरों की मौजूदगी का पता लगा लेता है।
जेबराफिश पर हुए शोध का संबंध कोरोना महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की मानसिकता और उसके प्रभाव के बारे में जानकारी मिल सकती है मैक्सप्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रेन रिसर्च की एरिन शुमे की अगुवाई अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम में पाया है कि जेबराफिश में मेकोनोसंसेशन और पानी की गतिविधियों के जरिए एक दिमाग का हार्मोन सक्रिय होता है जिससे वे दूसरे प्राणियों की उनके पास की उपस्थिति का पता लगा लेती है सामाजिक स्थितियों में विविधता जानवरों के बर्ताव में लंबे प्रभाव डाल सकता है मिसाल के तौर पर सामाजिक रूप से अकेले रहना इंसान और दूसरे जानवरों में जिसमें मछलियां भी शामिल है पर बुरा असर डालती है।
लेकिन सामाजिक वातावरण को लेकर दिमाग की समझ को सही तरीके से समझा नहीं गया है सामाजिक वातावरण में न्यूरॉनल जींस की प्रतिक्रिया को समझने के लिए स्नातक छात्र ल्युकल एनेसर और उनके साथियों ने जेब्रा मछलियों को अलग-अलग अकेले और उनके साथियों के के साथ पाला वैज्ञानिकों ने आरएनए सीक्वेंसिंग का उपयोग कर हजारों न्यूरॉनल जींस की अभिव्यक्ति स्तरों को नापा एनेसर ने बताया जो मछलियां सोशल आइसोलेशन में पली-बढ़ी थी हमने उनकी जींस की अभिव्यक्ति में बदलाव पाया आप इनमें से एक पैरा थायराइड हार्मोन2 कोडिंग में था जो दिमाग का एक पेप्टाइड है जिसके बारे में अभी तक जानकारी नहीं थी।
इस हार्मोन के घनत्व का अध्ययन से पता चला कि अकेले रहने वाली जेब्रा मछली में यह गायब हो गया था लेकिन उसके टैंक में और मछलियां डाली गई तो थर्मामीटर की रीडिंग की तरह बढ़ गया इस खोज में उत्साहित होकर वैज्ञानिकों ने इसकी जांच और करने के लिए अकेले रहने वाली मछली के समूह में रहने वाली मछलियों के टैंक में डाला और 30 मिनट के अंदर ही उसके पीएच लेवल तेजी से बढ़ गए और 12 घंटों में यह स्तर समूह में पहले से रहने वाले मछलियों के समक्ष हो गया।
यह जीन अभिव्यक्ति और वातावरण को बहुत ही तेज और अप्रत्याशित नियंत्रण था ऐसे में सवाल था कि जानवर दूसरों को पहचानने के लिए कैसे महसूस करते हैं जैसे जीन अभिव्यक्ति में बदलाव हो जाता है यह पहचान देखने चखने या सूखने से नहीं होती बल्कि एक मेकोसेंशेशन से होती है जिससे आसपास की तैरने वाली मछलियों की शारीरिक गतिविधियों से होती है ऐसा वे खास संवेदी अंग लेटर लाइन के जरिए करती है जैसा इंसान छूकर महसूस कर सकते हैं वैसे ही जेब्रा मछलियां दूसरी मछलियों की तैरने की गतिविधि को पानी की हलचल से महसूस कर सकती है।
जब शोधकर्ताओं ने कृत्रिम तरीके से उसी तरह हलचल पानी में की तो हैरानी की बात थी कि मछलियों ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी जैसे आस पास कोई मछली हो शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे साफ है कि दूसरों की मौजूदगी का दिमाग पर गहरा असर होता है और हो सकता है कि यह न्यूरो हारमोंस सामाजिक मस्तिष्क को और बर्ताव को प्रभावित करता है .
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