अगर कोई वेक्सीन 95 प्रतिशत तक सफल होती है तो इसका मतलब क्या होता है ?यहां जाने

कोरोना वैक्सीन की रेस में सबसे आगे चल रहे फ्रंट्रनर के डिटेल्स की उम्मीद से कहीं बेहतर काम कर रहे हैं। 


Pfizer और BioNTech ने तो इसी सप्ताह अपने वैक्सीन के 95% प्रभावशाली होने का दावा भी कर दिया वहीं रूस की स्पुतनिक  और अमेरिका की मॉडर्ना की एफीकेसी रेट 90 से 94. 5% तक बताया जा रहा है मायो क्लिनिक  की वेबसाइट डेवलपर डॉक्टर ग्रेगरी पोलैंड ने बड़ा एक बड़ा गेम चेंजर मान रहे हैं वह कहते हैं कि हम तो सिर्फ 50 से 70% तक की सफलता उम्मीद कर रहे थे। 


वही फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने ऐसी वैक्सीन को इमरजेंसी देने की बात कही है जिसका एफकेसी रेट  कम से कम 50 परसेंट हो हाल ही मेंआपने ऐसी वेक्सीन के बारे में सुना होगा  जो कुछ लोगों को दी गई लेकिन 100 में से 95 लोगों की जान बचाने का दावा करती है लेकिन इस तरह के दावे हकीकत से काफी दूर है। 


पूरी दुनिया में कैसे काम करती है यह कई बातों पर निर्भर करता है और हमारे पास कोई जवाब नहीं है जैसे क्या वैक्सीनेट हुए इंसान को एसिंप्टोमेटिक इंफेक्शन हो सकता है या फिर कितने लोगों को टीका लगाया जाएगा लगभग 100 साल पहले वैज्ञानिकों ने वैक्सीन ट्रायल के नियम बनाए थे इस प्रक्रिया के तहत इजराइल में कुछ वॉलिंटियर्स को असल में वैक्सीन दी जाती है जबकि कुछ को प्लेसिबो यानी आर्टिफिशियल टीका दिया जाता है इसके बाद शोधकर्ता देखते हैं कि किस समूह में कितने लोग बीमार हुए। 


मिसाल के तौर पर फाइजर ने 48661 लोगों को परीक्षण में शामिल किया था जिनमें से 170 लोगों में कोरोना के लक्षण मिले यहां 170 वॉलिंटियर्स में से सिर्फ 8 को असली वैक्सीन दी गई थी जबकि 162  को प्लेसिबो टीका यानि  की नकली वेक्सीन दिया गया था फाइजर के शोधकर्ताओं ने दोनों ही ग्रुप के ऐसे लोगों को छांटा  जो बीमार पड़ गए थे। 



यह दोनों ही समूह काफी छोटे थे हालांकि जिन लोगों को असली वैक्सीन दी गई थी उनकी तुलना में आर्टिफिशियल वाले लोग ज्यादा बीमार पड़े इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने दोनों समूह में वैक्सीन के असर को रेखांकित किया दोनों समूहों के बीच जो अंतर दिखता है उसे ही वैज्ञानिक एफिकेसी कहते हैं दोनों समूह  जिन्हे  असली वैक्सीन दी गई है और जिन्हें नकली वैक्सीन दी गई अगर उनके बीच कोई फर्क नहीं होता तो वैक्सीन बेअसर मानी जाती असली वैक्सीन दिए गए लोगों में से कोई भी बीमार नहीं पड़ता है तो वैक्सीन सो फ़ीसदी प्रभावी मानी जाती है। 


ऐसे में 95 फीसदी एफिकेसी रेट का  मतलब यही है कि वैक्सीन काम कर रही है हालाँकि असल में यह दर कभी ये तय  नहीं करती की वैक्सीन लगने के बाद आप के बीमार पड़ने की संभावना कितनी है जॉन्स हापकिंस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ केके एपिडेमियोलॉजिस्ट नोआर बार ज़ीव कहते हैं प्रभाविता और प्रभावशीलता एक-दूसरे से जुड़ी हुई है लेकिन यह बिल्कुल अलग चीजें हैं एफिकेसी सिर्फ पैमाना है जो क्लीनिकल ट्रायल के दौरान बनाया जाता है जबकि इफेक्टिव इसका मतलब है कि पूरी दुनिया में वैसा काम कर रही है। 

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