लंकापति रावण को कौन नहीं जानता उसने अपनी अपार शक्ति से ना केवल देवताओं का राज छीन लिया बल्कि सभी ग्रहों को भी कैद कर लिया था।
जिस शनिदेव से सब डरते हैं रावण ने शनिदेव को भी नहीं छोड़ा था कहते हैं कि रावण अपने काल को भी अपने सिरहाने बांध कर रखता था रावण के बल पर आक्रमण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने शनिदेव को औंधे मुंह करके अपने सिंहासन के नीचे डाल दिया और उनके पीठ को अपना पायदान बना लिया जब रावण को अपने दरबार में दिखाया जाता है तो रावण की सिंहासन के सामने पायदान की जगह वहां पर कोई लेटा हुआ दिखाई पड़ता है जितनी देर रावण अपने सिंहासन पर बैठता है शनि को अपने पैर से दबाये रखता है।
रावण को बहुत सुकून मिलता है उसके अभिमान को और पुष्ट करता है कोई कहता है कि रावण के नीचे काल दबाव पड़ा है तो कोई कहता है कि रावण के पैर के नीचे शनिदेव हैं तीर्थराज प्रयाग राज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय ने अपनी पुस्तक 'कैसे दूर करें शनि पीड़ा' में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है शनि देव की दृष्टि से बचने के लिए शनि देव को उल्टा लिटा कर रावण ने उनके ऊपर पैर रखा हुआ है क्योंकि शनि की दृष्टि बहुत खराब होती है जिस पर शनि की दृष्टि पड़ जाए उसका सर्वनाश होता है।
वह जानता है इसलिए रावण ने शनिदेव को उल्टा रखा हुआ है उल्टा लेट होने के कारण है पता लगता है कि वह कॉल नहीं शनिदेव है जब रावण के पुत्र मेघनाथ का जन्म होने वाला था तब रावण ने सभी ग्रहों को शुभ सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया सारे ग्रह तो आज्ञा मान लिया किंतु ठीक उसी समय शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया शनि ने मेघनाथ के जन्म के समय ऐसा योग बना दिया था जिससे आगे चलकर मेघनाथ लक्ष्मण के हाथों मारा गया था।
जब रावण के पुत्र का जन्म होने वाला था तो उसने सभी नवग्रह कोई आदेश दिया कि वह उसके पुत्र की कुंडली के ग्यारहवें घर पर स्थित हो जाए व्यक्ति की जन्म कुंडली का 11 वां घर शुभता का प्रतीक होता है यदि ऐसा हो जाता है तो उसके होने वाले पुत्र की मृत्यु असंभव हो जाती रावण की आज्ञा अनुसार सभी ग्रह उसके होने वाले पुत्र की कुंडली के ग्यारहवें घर में स्थित हो गए रावण निश्चिंत है कि अब इस मुहूर्त में उत्पन्न होने वाला उसका पुत्र अजय होगा।
किंतु अंतिम क्षणों में जब उसका पुत्र पैदा ही होने वाला था शनिदेव उसकी कुंडली के ग्यारहवें घर से उठकर 12 घर में स्थित हो गए कुंडली का बारवा शुभ लक्षणों का प्रतीक है इस परिवर्तन से मेघनाथ की आयु अल्पायु हो गई रावण हर तरह से निश्चित था किंतु जब उसने अपने राजपुरोहित अपने पुत्र की कुंडली बनाने को कहा तब उसे पता चले कि शनिदेव ने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है उसे अपार दुख हुआ और उसे ब्रह्मदण्ड की सहायता से शनि को बंदी बना लिया।
रावण ने दंड स्वरूप शनिदेव की टांग पर प्रहार शनिदेव की एक टांग भी तोड़ दी कहा जाता है कि रावण के दरबार में सभी नवग्रह उपस्थित रहते थे किंतु शनि से विशेषकर बैर होने के कारण उन्हें रावण सदैव अपने चरण पादुकाओं के स्थान पर रखता था बाद में लंका दहन के समय महाबली हनुमान ने शनिदेव को मुक्त कराया।
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